आग
ऐ आग तुने आज ये कैसा सितम दिया,
आबाद था शहर इसे वीरान कर दिया ा
मजहब की सियासत ने हवा जुझमे भर दिया ,
इंसा को तुने हिन्दू मुसलमान कर दिया ा
इन्हे राम बनाय उन्हे रहीम कर दिया,
तुने इन्हे सब रिस्ते नाते हीन कर दिया
जो खुद के लिए जिए वो वन्दा बना दिया
इंसा को तुने आज दरिन्दा वना दिया
बच्चो को तु ने गोद से मरहूम कर दिया
बहनो को उनके भाइयो से दूर कर दिया
इंसा के लहू को तुने पानी बना ,
मर्दो के चेहरे से वेा पानी हटा दिया
इंसानियत का आज हर रिस्ता मिटा दिया
इस शहर से एक-एक फरिस्ता हटा दिया
पत्थर के रहनुमाओ की सुरत बता दिया
चेहरे से आज इनके हर पर्दा हटा दिया ा
इवादत
जमाने से यू वे फयॉ जा रहे है,
नही है खवर हम कहॉ जा रहे है ा
बता मेरे मालिक जहॉ के रहनुमा
उम्मीदो पे तेरे कहॉ जा रहे है ा
न होगी खबर तेरे आने की लेकिन
तु आता तो है हम जहॉ जा रहे है
जमी पर कदम आसमा की है हसरत
मगर अब तो छोडे जहॉ जा रहे है ा


0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ