बुलबुल

एक खास आवाज जो वक्‍त की धडकन हैं

मंगलवार, 10 मार्च 2009

आज होली हैं

मारा देश त्योहारो का देश है हर मौसम के अपने अपने त्योहार है इन त्यौहारो की एक बडी बिशेषता यह है कि कोयी भी त्योहार यहॉअकेले नही मनाया जाता और ही उनको अकेला कोई मना ही सकता है सारे त्याोहारो का अपना समुदाइक महत्है कोई भी व्यक्तिअकेले इन त्यौहारो में अपनी भागीदारी नही सुनिश्चित कर सकता है ये हमे यह बताते है कि हमारी सामुदाइक भवना कीतनी प्रवल है अनावश्यक की असुरक्षा का आवरण ओढ कर हम ‍‍‍‍ ‍‍‍ ‍ ‍व्यक्तिवादी होते जा रहे है,समुदाइक सहभागिता के हमारे माइने बदलते जा रहेहै,औपचारिकता की झलक हमारे व्यवहार मे अन्दर तक पैठ बना चूकी है,
आर्या व्रत के नागरिको को यह हो क्या रहा है,जहॉ आज से हजारो वर्ष पूर्व श्री कृष् ने स्पस् किया कि कर्म पर ही मनुष् का अधिकार होताहै फल पर नही,तुलसी दास जी ने भी कहा कि -हानि -लाभ ,जीवन -मरन, जस-अपजस विधि हाथ,फिर असुरक्षा कैसी,हॉ विश्वास के संकटका आप सामना अवश् कर रहे है,विश्वास का यह संकट आपको अपनी सभ्यता और संस्कृति से जरूर पृथक कर रहा है,सभ्यता औरसंस्कृति से अलगा होने का आशय है ,फिर वही बर्बर अवस्था क्यो कि दूसरे की संस्कृति मे आप विदूषक तो हो सकते है माननीय कभी नही,
समाज की कुरीतियॉ तो सेस्कृति की संबाहक होती है और ही निर्धारक यह केवल बजारी करण की देन होती है,अगर इनका आशयसमझना है तो बजारी करण से बाहर निकलो, विश्वास पैदा करो खुद को समझो,
यह होली तुम्हे सब कुछ बता रही है यह भक्ति -विश्वास,श्रद्धा-त्याग,भाईचारा कात्योहार है और सब के मूल में छिपा है आनन्------निश्चिन्तता ‍‍‍‍‍‍‍ ‍ ‍‍‍‍‍ ‍‍‍‍‍ ‍‍‍‍‍‍

रविवार, 8 मार्च 2009


पैगाम

तेरी मुस्‍कराहट का अंजाम देखा

वो कैसे गया तेरा पैगाम देखा

जो रस्‍ते से गुजरा तो सिजदे के माफिक

जमी पर लिखा जब तेरा नाम देखा

तडपते हुये दिल का तुफान देखा

मुहब्‍बत क्‍यो होती है बदनाम देखा

नही थी खबर दीनो दुनिया की लेकिन

छलकता हुआ इश्‍क का जाम देखा


यादेंवो दिल भी क्‍या जो तुमसे मिलने की दुआ न करे ,

मै तुमको छोड कर जिन्‍दा रहूॅ खुदा न करे ा

रहेगा साथ तेरा प्‍यार जिन्‍दगी बन कर , ये और वात मेरी जिन्‍दगी वफा न करे ा

फलक पर आये सितारे तेरी सूरत बन कर ,

ये रात बीत न जाये कोयी दुआ न करे ा

जमाना देख चुका है परख चुका है मुझे,

यतीम जान के काबे मे इल्‍तजा न करे ा

हूॅ खुशनसीब जो पायी है जुदाइ तेरी ,

हमारी याद कभी तुमको गम जदा न करे ा

राहें

ये शाम यूही ढलेगी ,

ये रात यूही चलेगी ,

दिन का उजाला आयेगा,

जीवन का फसाना गायेगा ,

ये पहिया यूही घूमेगा ,

वक्‍त यूही झूमेगा ,

तुम चल सकते हो तो चल जाओ ,

तुम ढल सकते हो तो ढल जाओ

इतिहास युही दुहरायेगा ,

अंजाम वही बतलायेगा ,

है यही फसाना दुनिया का , अंजाम पुराना दुनिया का,

जो वक्‍त के आगे रहता है,

इलजाम वही बस सहता है,

इतिहास वही दुहराता है,

मंजिल पर पहुच जो पाता है ा


आग

ऐ आग तुने आज ये कैसा सितम दिया,

आबाद था शहर इसे वीरान कर दिया ा

मजहब की सियासत ने हवा जुझमे भर दिया ,

इंसा को तुने हिन्‍दू मुसलमान कर दिया ा

इन्‍हे राम बनाय उन्‍हे रहीम कर दिया,

तुने इन्‍हे सब रिस्‍ते नाते हीन कर दिया

जो खुद के लिए जिए वो वन्‍दा बना दिया

इंसा को तुने आज दरिन्‍दा वना दिया

बच्‍चो को तु ने गोद से मरहूम कर दिया

बहनो को उनके भाइयो से दूर कर दिया

इंसा के लहू को तुने पानी बना ,

मर्दो के चेहरे से वेा पानी हटा दिया

इंसानियत का आज हर रिस्‍ता मिटा दिया

इस शहर से एक-एक फरिस्‍ता हटा दिया

पत्‍थर के रहनुमाओ की सुरत बता दिया

चेहरे से आज इनके हर पर्दा हटा दिया ा

इवादत

जमाने से यू वे फयॉ जा रहे है,

नही है खवर हम कहॉ जा रहे है ा

बता मेरे मालिक जहॉ के रहनुमा

उम्‍मीदो पे तेरे कहॉ जा रहे है ा

न होगी खबर तेरे आने की लेकिन

तु आता तो है हम जहॉ जा रहे है

जमी पर कदम आसमा की है हसरत

मगर अब तो छोडे जहॉ जा रहे है ा

शनिवार, 7 मार्च 2009

हम क्‍यो नही सोचते

निजी एवं सर्वजनिक जीवन के भ्रष्‍टाचार से सभीपरेशान हैं सब चाहते है कि इससे मुक्‍ती मिले लेकिन यह विचारणीय है कि क्‍या वास्‍तव में वह इतने ही प्रतिबदद्यध भी है कि उनके जीवन मे भ्रर्ष्टाचार से हलचल न मचे हम स्‍वये भ्रष्‍टचार को प्रश्रय दे और यह अपेक्षा भी रखे कि हमारे जीवन मे भ्रष्‍टाचार कोइ बाधा न पैदा करे आज बडी विचित्र स्‍थिति है सभी लोग भ्रष्‍ट तरीके से अपनी स्‍वार्थ सिद्धी तो चाहते है लेकिन साथ ही यह भी चाहते है कि दूसरा उनके साथ सद् आचरण करे इस बाजारवाद के दौर मे जब हर व्‍यक्ति एक दूसरे से गला काट प्रतियोगिता में लगा है तो फिर किससे अपेक्षा कीजा रही है कि वह सद् आचरण को अपनायेगा क्‍या किताबो में लिखे वो निर्जिव अच्‍छर हमे सदाचार का पाठ पढाने के लिए पर्याप्‍त है क्‍या सदाचार के लिए इकलौते वही जिम्‍मेदार है जो स्‍वये निर्जिव है हम क्‍यो नही सोचते

बुधवार, 4 मार्च 2009

स्‍वर्ग-नरक

एक फकीर था जीवन भर उसने पुण्य का कार्य किया ,जाने अनजाने उससे एक अपराध हो गया ,मत्यु के समय यमदूत आये उन्होने फकीर के सामने प्रस्ताव रखा कि अपनी इच्छानुसार वह पहले स्वर्ग या नरक का चयन कर सकता हैं ा फकीर ने नरक मॉगा यमदुत उसे नर्क में लेकर चले गये ,नर्क में उसने देखा कि मनुष्येा के हाथ बीस-बीस मीटर लम्बे हैं सब दुवले पतले व दुखी थे,खाने का समय था सबके सामने अच्छे-अच्छे भोजन रख दिये गये लेकिन किसी का हाथ अपने मुह तक नही पहुच पा रहा था थेाडे प्रयास के बाद उन लोगो ने दूसरे के सामने रखा भोजन उठा कर फेकना प्रारम्भर कर दिया और सभी भूखे ही रह गये ं फकीर के नर्क का समय समाप्त हो गया दूत उसे स्वर्ग मे ले गये वहॉं भी लोगो के हाथ उतने ही लम्बे थे लेकिन सभी स्वथ्य एवं प्रस्रन थे फकीर को वडा आश्चर्य हुआ ा खाने का समय यहॅा भी आया उसने देखा यहॉ लोग अपने लम्बे हाथो से दूसरे को भोजन करा रहे थे थोडी देर मे सबने भोजन कर लिया ा फकीर को स्वरर्ग -नर्क का आशय समझ में आ गया था ा

अबाध

अरस्तुल ने कहा था मनुष्यी राजनैतिक प्राणी है ,कालान्तहर मे इसकी सत-प्रतिशत परिण्ती हुइ ,मनुष्यन ने राजनीति को अपने जीवन का एक महत्व पूर्ण्‍ अंग बना लिया ,राजनैतिक शक्ति का केन्द्र भविष्य का सबसे ससक्त केन्द्र सावित हुआ ,मानव जीवन के हर पक्ष मे राजनीति ने अपना दबदबा बनाये रखा लेकिन फिर भी आदर्श के चंगुल से यह अपने को मुक्तप नही करा सकी थी इस सीमा तक कल्याेण्‍ कारी उद़देश्यो के पूर्ती की आशा इससे की जा सकती थी
कालान्तिर मे परिद़श्यर बदला अाधुनिक राजनीति के जनक मैकियावेली का उदय हुआ आपने यह सिद्ध किसा कि राजनीति मनुष्यो‍ के लिए नही है वरन मनुष्यै ही राजनीति के लिए है छल-कपट-झूठ-फरेब-स्वाेर्थ राजपीति के आधार स्त म्भ बने , पूरे विश्व ने इसका स्वाकगत किया यह स्वसच्छ न्दफ थ्‍ी अनियंि‍त्रत थ्‍ी आदर्श का स्थाभन स्वारर्थ ने ले लिया, मानव कल्यािण्‍ का स्थानन स्वल-कल्यादण्‍ ने ले लिया ा इसकी चमक की चकाचौध ने मनुष्यथ की ऑखो को चौधिया दिया वह अब बहुत दूर तक देख पाने की सामर्थ्ये खो बैठा निहित स्वानथो ने उसे अन्धाक बना दिया ा आशा वादियो एवं निराशा वादियो मे केवल एक समानता रह गयी दोनो की ही शान्ती् छिन गयी ा

श्रीलंकन क्रिकेट टीम पर हमला मात्र पाकिस्ता न की बुरी कानून व्यववस्थाह को ीह नही प्रदर्शित करता है, वरन यह भी अताता है कि एक राष्टो जब अपने पतन की अवस्थान में जा रहा होता है राष्टीेय सम्माहन एवं स्वायभिमान जैसे शब्दोा के मायने बदल जाते है ा पूरी दुनिया में निन्दात हो रही है,कि पाकिस्ताान ऐसे मेहमानो की सुरक्षा करने में भी सक्षम नही है जिसपर पूरे देश के र्किकेट प्रेमियो की निगाहे थी ा
यह एक लाचार राजनैतिक व्यमवस्था की झलकियां मात्र हैं, वही राजनैतिक व्यमवस्थार जो हर समय अपने को किसी भी राष्ट़य की सर्वोच्च प्रभावशाली संस्था के रूप में प्रकट करने के लिए उतावली रहती हैं
यहाँ समस्या सामन्ज़स्यी की भी दिखायी पडती है,जो अधिकारो एवं कर्तवयो के बीच, संस्थाओ संस्था‍ओ के बीच लुका-छिनी का खेल-खेल रही होती हैं ,हुक्मटरान अपने अध्किारो के प्रति सचेष्‍ट रहते हैं राष्ट़ उनके कर्तव्‍यो के प्रति प्रत्यसक्ष –परोक्ष रूप से सचेष्टं रहता हैं,जब राजनैतिक संस्थाह का अधिकार बदता हैं तो उनके प्रति राष्ट़ु की अपेक्षाओ का बदना स्वा्भाविक है सामन्जरस्यै बिगडने पर राष्ट़ का पतन अवस्युम्भािवि होता हैं यह पतन ही लाता है बदती बेरोजगारी ,बदती महगाइ, कुपोषण्‍ भष्टा्चार, आतंकवाद आदि ा यह सारी पतन कारी प्रवृत्तियॉ किसी देश मे उसी तरह सक्रिय हो जाती है जैसे वीज वोने से पहले हलवाहो का समूह खेत को उपजाउ बनाने के लिए सक्रिय हो जाता है और बीज पडता है विनास का जो तेजी से फलता फूलता है और एक सभ्याता का पतन हो जाता हैा

शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

सपना

सुवह होती है ,एक सपना टूट्ता है,रात होती है एक सपना पुन: जन्म लेता है; यही प्रक्रत का विधान है, यही जीवन का सग्राम है ,जो जाने सो योगी जो न जाने भोगी, यह जगत असत्य नही है,पर सपना भी सत्य नही है

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

लोक्तन्त्र

लोक्तन्त्र की अपनी अपनी एक मर्यादा होती है और जनता इसकी पर्हरी होती है मतदान मे क्या इसक ध्यान रखा जा रहा है यदि नही तो दोशी कौन है हम क्या अपना दोश दुसरे पर थोप नही रहे है हमै मन्थन करना ही होगा

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

एह्सास

ये एक बहाना है आपको करीब लाना है ब